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बंदा सिंह बहादुर: भारत का शूरवीर

भारत में बहुत से शूरवीरों ने जन्म लिया। बहुत से लोग अपनी धर्म की रक्षा के लिए लड़े तो कुछ अपने देश को बचाने के लिए। भारतीय इतिहास में वीर शहीद बंदा बैरागी के नाम से जाने जाने वाले बंदा सिंह बहादुर भी इन्ही शूरवीरों में शामिल हैं। उनका नाम इतिहास के पन्नों से कभी भी नहीं मिटाया जा सकता। उन्होंने मुगलों पर सशस्त्र आक्रमण किया। वीर शहीद बंदा बैरागी के जीवन की शुरुआत एक कुटिया से हुई जो बाद में आगे चलकर महायोद्धा और राजा भी बने। उनके जीवन का यह सफर बड़ा ही अद्भुत था। उस समय मुगलों को भ्रम था कि उन्हें कोई हरा नहीं सकता उनका यह भ्रम बंदा बहादुर ने ही तोड़ा था। तो आइए जानते हैं इस महान योद्धा के बारे में कुछ अनसुनी बाते.

जीवन के शुरुआती दिन

1670 ई. में बंदा सिंह बहादुर कश्मीर के पुंछ जिले के राजौरी क्षेत्र के एक राजपूत परिवार में जन्में थे। माता पिता ने उनका नाम लक्ष्मण देव रखा। लक्ष्मण मात्र 15 वर्ष के थे जब उन्होंने बैरागी शिष्य का जीवन अपना लिया। वे कुछ समय तक नासिक के पंचवटी में रहे और बाद में दक्षिण की ओर चले गए जहाँ उन्होंने एक आश्रम को स्थापित किया. 1708 ई. में बंदा सिंह बहादुर की मुलाकात सिक्खों के दसवे गुरु “गुरु गोविंद जी” से हुई। गुरु गोविंद जी से प्रेरित होकर बंदा सिंह ने सिख धर्म अपनाया जिसके बाद उन्हे एक और नया नाम नाम मिल और वह नाम था- “बंदा सिंह बहादुर”।

गोविन्द सिंह के बच्चों की हत्या ने झकझोर दिया

सरहिंद के फौजदार वजीर खां ने बड़ी बेरहमी से गुरु गोविन्द सिंह जी के दो बच्चों की हत्या कर दी थी। एक बच्चे की आयु सात वर्ष थी, वही दूसरे की नौ वर्ष। बच्चो की इस निर्मम हत्या का बन्दा सिंह बहादुर पर बहुत गहरा प्रभाव हुआ। उस समय उनके जीवन का एक मात्र उद्देश्य था और वह था वजीर खां से बदला लेना. बंदा सिंह बहादुर पंजाब आए और बहुत बड़ी संख्या में सिक्खों को इकट्ठा किया। एक अच्छी रणनीति बनाई और सरहिंद पर आक्रमण करके वहाँ कब्जा कर लिया इतना ही नहीं अपने गुरु के बच्चों के हत्यारे वजीर खा को भी मार डाला .उनका यह साहस और हिम्मत देखकर गुरु गोविंद सिंह बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने बंदा सिंह जी से मुगलों से लड़ने और उनका सब कुछ छीन लेने को कहा। अपने गुरु का आदेश पाकर बंदा सिंह अपनी सिख सेना के साथ मुगलों से लोहा लेने निकल पड़े।

‘समाना’ के युद्ध में मुगलों को हराया

उस समय सरहिंद के किसान वहाँ के ज़मीदारों के अत्याचारों से त्रस्त थे। सभी लोगों को एक नेता की तलाश थी जो निडर और साहसी योद्धा हो. सभी किसान गुरु गोबिंद सिंह के बेटों की हत्या के हादसे को नहीं भुला पाए थे।यहाँ पर जीतने सिक्ख रहते थे सभी ने बंदा सिंह को धन उपलब्ध और घोड़े बड़ी संख्या में उपलब्ध कराया.1709 ई. में बंदा सिंह बहादुर ने अपने सैनिकों के साथ अचानक सरहिंद के छोटे से क़स्बे समाना पर हमला बोल दिया जहाँ मुगल सेना से उन्होंने युद्ध लड़ा और हजारों मुगलों को मार गिराया। बंदा सिंह अपने सैनिकों के साथ कापोरी, सतलुज, एवं नाहन जीतते हुए सरहिंद पहुंचे।

कुछ ऐसी थी सरहिंद की जीत

कहते है अगर आदमी में हिम्मत और साहस है तो वह क्या कुछ नहीं कर सकता। इस बात को प्रमाणित किया बंदा सिंह ने। अपने साहस और हिम्मत के बल पर बंदा सिंह बहादुर ने अपनी सेना के साथ 1710 ई.में सरहिंद पर हमला किया. बंदा सिंह बहादुर की फ़ौज में उस समय 35000 सैनिक थे. जबकि मुगलों के पास अच्छी ट्रेनिंग लिए हुए 15000 सैनिक थे. मुगल सैनिक संख्या में कम थे लेकिन उनके पास बंदा सिंह के सैनिकों से बेहतर हथियार थे.बड़ी बहादुरी से लड़ते हुए बंदा सिंह और उनके सैनिकों ने सरहिंद शहर को मिट्टी में मिला दिया. बंदा बहादुर की जीत से उत्साहित होकर स्थानीय सिक्खों ने जालंधर में बटाला, राहोन, और पठानकोट पर भी क़ब्ज़ा जमा लिया.

जारी किए सिक्के और सील

बंदा सिंह बहादुर ने अपना एक नया कमान केंद्र बनाया जिसका नाम उन्होंने लौहगढ़ रखा. सरहिंद की जीत की खुशी में उन्होंने नए सिक्के और अपनी एक नई मोहर भी जारी कराई. सिक्कों पर बंदा सिंह जी ने गुरु नानक और गुरु गोबिंद सिंह जी के चित्र बनवाए।1710 ई. में मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ने खुद बंदा सिंह बहादुर के ख़िलाफ़ जंग लड़ने का निश्चय किया। उस समय बहादुर शाह 66 वर्ष के थे।बंदा सिंह जी को पकड़ने के लिए बहादुर शाह ने अपने सैन्य कमांडर भी भेजे लेकिन बंदा सिंह अपनी पत्नी और कुछ अनुयायियों के साथ पहाड़ों में छिप गए। मुगल सेना का कमांडर खाली हाथ लौटा, यह देखकर बहादुर शाह बहुत गुस्सा हुए और कमांडर को क़िले में ही कैद करने का आदेश दिया.

बड़ा दर्दनाक था अंत

बहादुर शाह कोई मृत्यु के बाद 1715 में फार्रुख सियार मुगलों का बादशाह बना। फार्रुख सियार ने अपने अफसर समद खान को बंदा सिंह बहादुर को पकड़ने का आदेश दिया। बहुत संघर्ष करने के बाद समद खान ने सेना की एक टुकड़ी के साथ बंदा को पंजाब के गुरदासपुर नंगल में घेर लिया।यह घेराबंदी लगभग आठ महीनों तक लगी रही और अंत में जब भूख और प्यास से बंदा सिंह बहादुर के सैनिक निढाल हो गये तो उन्हें समद खान के सैनिकों ने धोखे से बंदी बना लिया, जिसके बाद उन्हे दिल्ली ले जाया गया। मुगलों की क्रूरता का पता इस बात से चलता है कि बंदा सिंह के साथ उनके मृत सैनिकों के कटे हुए मस्तकों को भी दिल्ली ले जाया गया। बंदा सिंह के सैनिक बहुत वीर थे उन्हें मृत्यु को गले लगाना स्वीकार था लेकिन इस्लाम धर्म अपनाना नहीं।अंतिम समय में मुगल सैनिकों ने बंदा सिंह बहादुर के सामने भी इस्लाम धर्म को कबूल करने की शर्त रखी लेकिन उन्होंने मना कर दिया। इस बात पर मुगल कोतवाल सरबराह ख़ाँ ने क्रोधित होकर अपने बंदा सिंह के पुत्र अजय सिंह के शरीर को टुकड़ों में कटवा दिया। यह द्रश्य देखकर बंदा सिंह अंदर से दहल गए लेकिन उन्होंने इस्लाम धर्म नही अपनाया. मुगल चाहते थे कि बंदा सिंह अपनी जिद छोड़ दें और इस्लाम कबूल कर लें, क्रूरता की हद तो तब हो गई जब बंदा सिंह के पुत्र के दिल को निकाल कर बंदा बहादुर सिंह जी के मुँह में डाल दिया गया, यह द्रश्य दिल दहला देने वाला था। जब बंदा बहादुर सिंह टस से मस ना हुए तो जल्लाद ने बंदा बहादुर के शरीर के एक एक अंग को काटना शुरू किया। दर्द भरी यातनाएं झेलने के बावजूद भी बंदा सिंह को इस्लाम धर्म स्वीकार करना गवारा नहीं हुआ। अंत में जल्लाद ने तलवार उनके सिर को धड़ से अलग कर दिया. 9 जून 1716 बंदा बहादुर सिंह जी की निर्मम हत्या कर दी गई।“सच में धन्य हैं बंदा बहादुर सिंह और उनकी देशभक्ति!”

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SHAILJA
SHAILJA
Shailja is a writer, blogger & content curator by profession. Her write-ups are published on many reputed websites like women’s web, The Mom Store, Mompresso and others. She thinks that writing is a way to express your thoughts; it is the best way to convey your thoughts to lots of people at one time. Along with all these, she is also pursuing the full-time job of motherhood.

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