Homeरवींद्र कौशिक : द ब्लैक टाइगर

रवींद्र कौशिक : द ब्लैक टाइगर

भारत में समय समय पर ऐसे लोग हुए हैं जिन्होंने विभिन्न तरह से देश के प्रति अपने प्रेम की अद्भुत मिसाल प्रस्तुत की है, फिर चाहे बात करें मोहन लाल भास्कर की या सरस्वती राजांमनी की या फिर अजित डोभाल जी की, इन सभी ने समय समय पर देश भक्ति की मिसाल कायम की है. लेकिन रवींद्र कौशिक एक ऐसे देश प्रेमी थे जिनके बारे में शायद ही कोई जानता हो। यह एक ऐसे देश भक्त का नाम है जिन्हे शहादत के वक्त अपने देश भारत की मिट्टी तक न नसीब हुई.

रवीन्द्र कौशिक; एक सच्चे देश भक्त:

आपको जानकर यह आश्चर्य होगा कि रवींद्र कौशिक के मन में अपने देश के प्रति इतना प्रेम था कि वह भारत देश की सेवा करने के उद्देश्य से पाकिस्तान आर्मी में मेजर बन गए और वहाँ से खुफिया संदेश भारत तक पहुचाते थे। 1952 में राजस्थान के गंगानगर में रहने वाले एक पंजाबी परिवार में जन्में रवींद्र जी मात्र 23 साल की उम्र में पाकिस्तान चले गए थे और फिर कभी उन्हे अपने वतन की मिट्टी नहीं नसीब हुई. कहा जाता है कि इन पर ही ‘एक था टाइगर’ फिल्म बनी।

एक्टिंग करते-करते बन गए देश के जासूस:

जिस समय भारत आज़ाद हुआ था उस समय भारत और पाकिस्तान में रहने वाले बहुत से लोगों ने देश के बंटवारे का दंश झेला था। वह हादसा इतना बड़ा था जिसके बाद दोनों देश एक-दूसरे के दुश्मन बन गए. हमेशा दोनों देशों की सेनाएं युद्ध के लिए तैयार रहती थी.

इस दौरान भारत में रॉ (Raw) का गठन हुआ जिसमें जासूसी के लिए लोगों की देश को अच्छे जासूसों की तलाश थी.  बहुत से युवा इस क्षेत्र में अपनी किस्मत भी आजमा रहे थे, लेकिन देश को जिस जाँबाज की तलाश थी वह तो अपनी सपनों की दुनियाँ में खोया हुआ था।

रवीन्द्र के परिवार का संबंध राजनीति से नही था. उनके परिवार का कोई भी व्यक्ति भारतीय सेना में नहीं था। एक बेहद साधारण परिवार में पले रवीन्द्र को अभियन का जुनून था। शुरुआत में वह अपने घर पर ही अपने पड़ोसियों और रिश्तेदारों की नकल करते थे। वह एक अभिनेता बनना चाहते थे। ऐक्टर बनने का सपना आँखों में सँजोये वो “नेशनल ड्रामा प्रेजेंटेशन” में भाग लेने के लिए लखनऊ शहर पहुंचे.  यह वह समय था जन भारत में रॉ एजेंसी की स्थापना हो चुकी थी लेकिन अभी भी एजेंसी को अच्छे जासूसों की तलाश थी. जिस नाटक में रवीन्द्र जी ने हिस्सा लिया था, भारतीय सेना के अधिकारी उसे देखने के लिए सेना वहाँ मौजूद थे। नाटक की थीम थी चीन और भारत के हालात. इस नाटक में रवीन्द्र जी को “एक भारतीय का किरदार निभाना था जो चीन जाकर फंस जाता है और कई प्रताड़नाएं भी झेलता है, लेकिन अपने देश के प्रति उसका प्रेम कम नहीं होता।“ यह नाटक में रवींद्र जी के अभिनय को देख भारतीय सेना के अधिकारी बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने रवीन्द्र को रॉ एजेंसी में शामिल करने का निश्चय किया। रवींद्र इस प्रस्ताव को ठुकरा नहीं पाए और जासूसी करने के लिए रॉ एजेंसी में शामिल हो गए।

कठिन मिशन पर भेजे गए पाकिस्तान:

रवींद्र कौशिक जी भारतीय जासूस के रूप में पहली बार 1975 में पाकिस्तान भेजे गए. रवींद्र जी ने एक नई पहचान के साथ पाकिस्तान की सरहद में प्रवेश किया, उनकी यह पहचान थी नबी अहमद शेख़ के रूप में. रवींद्र कोई भी शक की गुंजाइश छोड़ना नहीं चाहते थे इसलिए उन्होंने खुद का खतना भी करा लिया जिससे लोगों को शक न हो कि वो मुसलमान नहीं हैं। पाकिस्तान भेजने से पहले जाने से पहले भारत में रवीन्द्र को उर्दू भी सिखाई गई, इतना ही नहीं उन्होंने कुरान पढ़ना, नमाज़ अदा करना, और मुस्लिम रीति-रिवाजों भी सीखा.

रवींद्र कौशिक; भारत का ब्लैक टाइगर:

रवींद्र कौशिक ने बहुत से शानदार काम किए जिस कारण भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हे ब्लैक टाइगर का नाम दिया। भारतीय रॉ ऐजन्सी में उनका यही नाम फेमस था।

पाकिस्तान में की लॉ की पढ़ाई:

पाकिस्तान के कराची में स्थित लॉ कॉलेज में उन्होंने दाखिला  लिया. रवीन्द्र उर्फ नबी अहमद शेख़ ने इस कॉलेज में खुद की नई पहचान को अच्छी तरह से स्थापित कर लिया और लॉ से स्नातक पूरा किया। डिग्री लेते ही नबी अहमद शेख़ ने पाकिस्तानी सेना को ज्वाइन किया। उन्हे पहले पाकिस्तानी सेना का विश्वास जीतना था जिसके लिए उन्होंने आर्मी की ट्रेनिंग बहुत मन लगाकर पूरी की।

पाकिस्तान की ‘अमानत’ से हुआ प्यार:

रवीन्द्र 28 वर्ष के थे जब उन्हें पाकिस्तान में अमानत नाम की लड़की से इश्क हो गया.  रवींद्र के करीबियों का मानना है कि पाकिस्तान में रवीन्द्र एक झूठा जीवन जीता था लेकिन वो अमानत से सच्चा प्यार करता था। वहाँ रवीन्द्र ने अमानत से मुसलमान रीति-रिवाज से निकाह किया और उनकी एक बेटी का जन्म भी हुआ.

ऐसे जीता पकिस्तानी सेना के अधिकारियों का विश्वास:

पाकिस्तानी सेना में काम करते करते रवीन्द्र जी ने पाकिस्तानी सेना के उच्च अधिकारियों का विश्वास जीता। रवींद्र जी जब पाकिस्तानी सेना में शामिल हुए थे उस समय वो सिपाही थे लेकिन वहाँ के उच्च अधिकारियों ने उनसे प्रभावित होकर उन्हें वहाँ का मेजर बना दिया। अपने परिवार के साथ पाकिस्तान में रहते हुए भी रवीन्द्र जी ने भारत के लिए जासूसी नहीं छोड़ी। उनके द्वारा दी गई जानकारियों ने भारतीय सेना को बहुत बार विकट परिस्थितियों से बचाया. इतना ही नहीं रवींद्र जी ने भारत में कार्यरत कई पाकिस्तानी जासूसों के बारे में भी भारतीय सेना को अवगत कराया।

ऐसे खुली पहचान:

रवींद्र कौशिक उर्फ नबी अहमद शेख़ ने 30 साल पाकिस्तान में बिताए और वही रहते हुए वो वीरगति को भी प्राप्त हुए। 1965 और 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच छिड़ी जंग के बाद पाकिस्तान हमारे भारत देश के प्रति बहुत ज्यादा ही सर्तक हो चुका था. भारत जहां चाहता था कि सीमा पर शांति रहे, वहीं पाकिस्तान अपने छुपकर वार करने के रवैये से बाज नहीं आ रहा था। पाकिस्तानी सेना और वहाँ स्थित खुफिया एजेंसी ने एक प्लान बनाया यह प्लान था भारत के सैन्य बल को कमजोर करना. पाकिस्तानी सेना में मेजर होने के नाते इस योजना की पूरी जानकारी रवीन्द्र को थी। योजना के अनुसार पाकिस्तानी सेना को भारत के उस बड़े हिस्से पर कब्ज़ा करना था जहा भारतीय सेना के 20 हजार से ज्यादा सैनिक तैनात थे।

पाकिस्तान ने योजना तो अच्छी बनाई थी लेकिन हमारे देश के जाँबाज जासूस रवीन्द्र कौशिक ने उनके इस प्लान को नाकाम कर दिया. रवीन्द्र कौशिक ने अपनी जासूसी के जरिए पहले ही भारतीय सेना तक यह सूचना पहुँचा दी थी। पाकिस्तान सेना हमले के लिए तैयारी ही करती रह गई और भारतीय सेना के सैनिकों को उस जगह से हटा दिया गया, जिससे भारत को नुकसान नहीं हुआ। इस घटना के बाद पाकिस्तानी सेना के अधिकारी और भी ज्यादा सर्तक हो गए, वे समझ नहीं पा रहे थे भारत तक ये सूचनाएं कैसे पहुँच रही हैं।

उन्हें आशंका थी कि उनके बीच कोई ऐसा व्यक्ति है जो भारत के लिए जासूसी कर रहा हैं। उस समय सीमा पार से जो भी व्यक्ति पाकिस्तान आता था उसकी बहुत सख्ती से जांच की जाती थी. 1983 में एक भारतीय जासूस जिसका नाम इनायत मसीह  था, पाकिस्तान भेजा गया। इनायत को पाकिस्तान रवीन्द्र की मदद करने के लिए भेजा गया था लेकिन शायद इस वक्त किस्मत ने साथ नहीं दिया और इनायत को पाकिस्तानी सेना ने पकड़ लिया। उससे कड़ी पूछताछ की गई जिसमें उसने रवीन्द्र कौशिक का नाम ले लिया।

इस तरह से रवीन्द्र कौशिक की असली पहचान उजागर हुई। पाकिस्तानी सेना के अधिकारी बहुत हैरान थे। उन्होंने उसी समय रवीन्द्र कौशिक को सियालकोट सेंटर में बंदी बना लिया। रवींद्र जी ने यहाँ बहुत सी प्रताड़नाएं झेली, उन्हें तरह तरह के लालच भी दिए गए, लेकिन भारत के खिलाफ उन्होंने एक शब्द भी नहीं कहा। बाद में उन्हें  मियांवालां जेल ले जाया गया, जहाँ वो टीबी जैसी घातक बीमारी के शिकार हो गए और उनकी मौत हो गई।

मृत्यु के बाद भी रहे अपने देश की मिट्टी से दूर:

इससे दुखद और क्या हो सकता है कि एक व्यक्ति जिसने 30 साल तक देश की रक्षा की उसे अंतिम समय में अपने देश की मिट्टी भी नसीब न हुई और इससे ज्यादा गर्व की बात भी नहीं हो सकती की तमाम प्रताड़नाएं झेलने के बाद भी रवींद्र कौशिक जैसे वीर ने कोई भी खुफियाँ जानकारी पाकिस्तानी सेना के अधिकारियों को नहीं दी। शायद ये किसी ने न सोचा होगा कि देश के लिए जासूसी करने वाले इस जाँबाज को इतनी बड़ी कीमत अदा करनी पड़ेगी।

आज भी अगर भारतीय खुफिया एजेंसी के सर्वश्रेष्ठ इंटेलीजेंस ऑफिसर की बात की जाए तो रविन्द्र कौशिक का नाम सबसे पहले लिया जाता है। वह भारत के सच्चे वीर योद्धा थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन देश के कर दिया।

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SHAILJA
SHAILJA
Shailja is a writer, blogger & content curator by profession. Her write-ups are published on many reputed websites like women’s web, The Mom Store, Mompresso and others. She thinks that writing is a way to express your thoughts; it is the best way to convey your thoughts to lots of people at one time. Along with all these, she is also pursuing the full-time job of motherhood.

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